गुमान किस बात का
न आए थे कुछ लेकर
न जायेंगे कुछ लेकर
जायेंगे सब छोड़कर यहीं
फिर भी हमें गुमान है
जाने किस बात को लेकर।।
जहां जाना है हमको
वहीं तुम भी जा रहे हो
फर्क बस इतना है हम बस से
और तुम कार से जा रहे हो।।
जी रहे है सब अपना जीवन
तुम भी वही जी रहे हो
सुबह उठना, दिन में काम
करना और रात को सोना,
हमारी तरह यही कर रहे हो।।
न जाने गुमान है तुम्हें
फिर किस बात का
जो खुद को अलग समझते हो
जो थे दोस्त तुम्हारे, अब
उनसे भी कटे कटे से रहते हो।।
पैसे है अब ज्यादा पास
यही बदलाव तो आया है
हो गए हो तुम बहुत बड़े
तुमको यही समझ आया है।।
ये धन तो जा भी सकता है
वक्त का पता नहीं चलता
अपनापन खत्म हो जाए एकबार
तो वो दोबारा नहीं पलता।।
फिर धन का कैसा गुमान
जो इंसान को इंसान भी न समझे
छोड़कर सब रिश्ते नातों को
दोस्तों के जज़्बात भी न समझे।।
हो अमीर या कोई गरीब
जाने को बस चार कंधे चाहिए
पैसा तो रह जायेगा यहीं पर
इतना तो हमको समझना चाहिए।।