हैसियत (लघु कथा)
सब्जी चुनते हुए अशोक ने सब्जी वाले की ओर मुखातिब होते हुए कहा यार ऐसा लगता है आपको कहीं देखा है। मंगल ने गौर से देखते हुए हां मुझे भी, कहीं आप अशोक शर्मा तो नहीं, मैं मंगल हूं। दोनों को स्कूल के दिन याद आ गए। अशोक ने मंगल से कहा तुमने पढ़ाई छोड़ दी थी। हां , अशोक भाई मेरे पिताजी नहीं रहे थे पारिवारिक जिम्मेदारियों में काम करना पड़ा, खैर आप क्या कर रहे हो? अशोक ने गर्व से जवाब दिया मेरी फैक्ट्री है, अच्छा काम-धंधा है। मंगल ने खुशी जाहिर करते हुए कहा बहुत अच्छा, शादी की या नहीं? अभी नहीं यार करूंगा तो तुम्हें अवश्य बुलाऊंगा। इसके बाद जब कभी अशोक सब्जी लेने आता मंगल बाजार भाव से कम ही दाम लेता। एक दिन अशोक ने मंगल से कहा शादी है, घर में सब्जी ज्यादा लगेगी सप्लाई कर देना। मंगल बोला क्यों नहीं, आप बता देना काम हो जाएगा। अब यह बताओ शादी कहां से कर रहे हो? कब और कहां आना है? अशोक ने जबाव दिया, शादी तो होटल अशोका में है लेकिन वहां लिमिटेड लोगों को ही बुलाया है, डेकोरम मेंटेन करना पड़ता है यार। तुम तो घर आना, सब्जी भी घर पर ही देना है शादी के बाद फैक्ट्री वर्करों और तुम जैसे मिलने वालों को एक पार्टी रखी है मंगल का सारा उत्साह ठंडा पड़ गया, अपनी हैसियत समझते हुए उसने बधाई दी और समय पर सब्जी सप्लाई का वादा ।
-सुरेश कुमार चतुर्वेदी