“हैवानियत में सियासत”
तुम फैसले का इंतज़ार करते रहना
वो हर रोज़ बलात्कार करता रहेगा,
तुम धर्म की सियासत में उलझे रहना
वो बेटियों की तिज़ारत करता रहेगा।
मर चुका है ज़मीर तुम्हारा
तुमसे क्या उम्मीद की जाए!!
जब आँख तुम्हारे ज़ानिब उठे,
शायद तुम्हे तब होश आजाए!
क्या तुम तब भी मौन रहोगे?
अपने काम मे मग्न रहोगे?
कभी उठोगे भी नींद से?
या सोये ही मर जाओगे??
वो लूट भी रहा है, सरेआम जला रहा है,
हर जुर्म को अपने, वो बख़ूबी निभा रहा है,
तुम्हारा क्या? तुम्हें तो हर नज़र में धर्म दिखता है,
बहन की आबरू लूट जाए,
उस रोज़ अखबार भी ख़ूब बिकता है।
नींद में सारे चौकीदार हैं,
अब तो बस लुटेरों की बहार है,
घर से बेटी निकली हैं क्या?
हर क़दम पे हैवानियत की तलवार है।
अपाहिज़ कानून से
किस बात की उम्मीद किए बैठे हो?
जिस आँख पर पट्टी लगी है,
उससे रौशनी की उम्मीद किये बैठे हो!
बेगुनाहों को मारने तो
पूरी भीड़ मिल जाती है,
जब अस्मत नारी की लुटे,
ये मर्दानगी तब कहाँ जाती है?
चलो माफ करो,
तुम अब भी धर्म के सौदागर हो,
इंसानियत बाँटने को तो,
अब भगवान सा ज़िगर हो।
ख़ैर
मर चुका हो ज़मीर जिसका
उस से और क्या उम्मीद की जाए?!
जब आँख तुम्हारी ज़ानिब उठे,
शायद तब तुम्हें होश आ जाए!?
-सरफ़राज़