हैवानियत दर हैवानियत ( हैदराबाद दरिंदगी )
उसको तो क्रूरता से मार दिया हैवानों ने
और हमें फिर से घेर लिया सवालों ने ,
खुद को हम ज़िंदा कहते हैं
और बात – बात पर शर्मिंदा रहते हैं ,
ऐसी घटनाएं बार – बार जाती हैं दोहराई
घटने के बाद दी जाती है दुसरों को दुहाई ,
अस्मत भी अपनी लुटी मारे भी हम गये
फिर दूसरे कौन होते है बताने को
कि क्या नही किया और क्या कर गये ,
बार बार हर बार यही होता है
न्याय होगा इस बार – अख़बार भी यही बोलता है ,
अन्याय के साथ न्याय हो ये कौन कहता है ?
पर न्याय के साथ अन्याय न हो हर कोई बोलता है ,
ऐसा नही की हैवानियत का अंत नही
किंतु चेहरे के अंदर हर कोई संत नही ,
जिसने बेशर्मी से चेहरा दिखा दिया
कि देखो हम हैवान हैं
आओ दिखा दें इनको
कि हम न्याय का आह्वान हैं ,
न्याय भी ऐसा की तुम सोच नही सकते
कोई पुलिस कोई कचहरी नही
कोई रिमांड कोई बेल नही
तुम चाह कर भी उसको रोक नही सकते ,
चलो हम इन दरिंदों को ऐसा सबक देते हैं
मिल कर सब उनको वही खोद कर ज़िंदा गाड़ देते है ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 30/11/2019 )