हैपी या अनहैपी न्यू इयर
सुबह सुबह नव वर्ष मन गया वर्मा जी का।
जब उन्होंने गुप्ता जी को बोल दिया हैपी न्यू इयर भाई साहब।
वर्मा जी को भी लगा होगा किधर बर्र के छत्ते में हाथ मार दिया यार।
एक तो रात की खुमारी अभी उतरी नही थी तिस पर गुप्ता जी को हैपी न्यू इयर।
गुप्ता जी तो ऐसे चालू हो गए थे गोया बन्द का बटन ही न हो।
वर्मा जी बोले अरे भाई साहब हैपी न्यू इयर ही बोला कोई गाली तो नही दी आपको।
यह गाली से कम नही वर्मा जी ।हम भारतियों के लिये। जिन अंग्रेजों ने हम पर ज़ुल्म ढाये उनके नववर्ष को हम मनाएं ।
लानत है हम पर।
क्या लगता है आपको आज जिस से नया वर्ष आ गया ।
क्या मौसम बदल गया। क्या फसल कट कर घर आ गई। क्या रातरानी महक उठी। क्या हमारा पंचांग बदल गया क्या हो गया ऐसा ,,,…… गुलाम मानसिकता और कुछ नही…… गुप्ता जी बड़बड़ाये जा रहे थे।
अरे भाई साहब खुशियाँ मनानी है, उसके लिये बहाना तो चाहिए ना… आप भी पता नही क्या क्या…. वर्मा जी ने थोडा नरमाहट दिखाने की कोशिश की। परन्तु जलती भट्टी में दो चार शबनम की बूुँ दे क्या असर डालती भला।
गुप्ता जी का पारा सातवें आसमान से 5वें पर ज़रूर आ गया। बोले वर्मा जी एक बात बताओ आप लोग कैसे भारतीय हो आपको वेलेंटाइन दीखता है मदनोत्सव नही, आपको नव वर्ष नज़र आता है नवत्सर नही, अपितु मुर्ख दिवस भी तुमारे लिये खुशियों की सौगात लाता है। क्रिसमस का पेड़ तुमारे लिए तुलसी से बड़ा हो गया। जनक जननी पूजन दिवस से बड़े अब पेरेंट्स डे हो गए। ओणम, पोंगल, होली, दीपावली, बसन्त सब आपके लिये गौण हो गए। आखिर आप लोग छद्म सिकुलरेज़्म में कितने अंधे हो गए ना .. क्या कहूँ। गुप्ता जी चाबी भरे गुड्डे की तरह बोले जा रहे थे जिसमे एक जीबी का किसी ने मेमोरी कार्ड फंसा दिया हो।और वर्मा जी बिचारे नख कर्तन किये जा रहे थे अपनी रसना से। क्या करते न भागने के थे न बैठने के शुरुआत भी तो उन्होंने ही की थी पंगे की।
मुहल्ले वालों को जैसे वर्मा जी या गुप्ता जी से कोई लेना देना नही था बस या तो सुनकर चुपचाप निकल लिए होते या खड़े होकर भागवत कथा की तरह श्रवण कर रहे थे। इतने मैं एक बना ने जयकारा लगाकर कथा को भंग करने की कोशिश करी। जय श्री राधे वर्मा साहिब । वर्मा जी बोले जय श्री राधे।परन्तु गुप्ता जी को तो यह भी नागवांर गुज़रा। हाँ इस बहाने वर्मा जी की शामत निकल गई थी और वो बिना अभिवादन के बना के साथ निकल लिये ।गुप्ता जी पीछे से बड़बढ़ाते रहे … कुछ नही हो सकता इस देश का… एक दिन वापस गुलाम होंगे साले…. बिलकुल ही अपनी संस्कृति का बोध नही रह गया है…. ।जाने क्या क्या…..।
उधर वर्मा जी सोच रहे थे…….शायद नया वर्ष सबके लिये नही आता और आता भी है तो एक साथ नही आता.. कुछ नही बदल सकता…
********मधु गौतम