हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
विधा-आदित्य छन्द आधारित गीत
विधान-मापनीयुक्त मात्रिक छन्द, क्रमागत दो चरण समतुकांत होना अनिवार्य,
5,14,19 वीं मात्रा पर यति एवं 28 वीं पर विराम।
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स्वर्ग या, जन्नत सभी कुछ, मान लो, उनके हीं पग में।
हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
शिष्टता, का बीज उर मे, वे सदा, ही रोपते हैं।
हो अहित, संतान के जो, शीश उस, का छोपते हैं।
तात से, हीं है मिला, हर पुत्र, को सम्मान जग में।
हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
त्याग कर, हर इक विलासी, भावना, जीते रहे हैं।
हो सफल, संतान उनकी, विष सदा, पीते रहे हैं।
त्याग की, प्रतिमूर्ति का जो, स्पष्ट सा, प्रतिमान जग में।
हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
घर अगर, माता हमारी, छत पिता, सब जानते हैं।
वेद या, ब्रह्मांड कहलें, सत्य है, सब मानते हैं।
हैं प्रथम, शिक्षक पिता अरु, पुत्र का अभिमान जग में।
हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
त्याग की, हर इक कहानी, का वहीं, किरदार जग में।
पुत्र के, पथ का प्रदर्शक, इक वहीं, आधार जग में।
आश है, विश्वास भी उम्मीद का उन्वान जग में।
हैं पिता, जिनकी धरा पर, पुत्र वह, धनवान जग में।।
✍️ पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’
मुसहरवा (मंशानगर)
पश्चिमी चम्पारण, बिहार
स्वरचित, स्वप्रमाणित