” हैं पलाश इठलाये “
गीत
फिर बसंत ने दी किलकारी ,
मन उपवन खिल आये !
कूक रही है कोयल कू कू ,
फाग राग में गाये !!
कानन भी हैं सजे सजे से ,
महकी है पुरवाई !
सरसों ने बल खाकर देखो ,
चूनर है लहराई !
सजी धरा है अंबर ताके ,
हैं पलाश इठलाये !!
रंग है बिखरा , खुशबू फैली ,
अंग अनंग चढ़े हैं !
खूब कसे है बंद कंचुकी ,
नयना कहीं लड़े हैं !
मस्तानी है छेड़ पवन की ,
चूनर है लहराए !!
अलसाई है गौरी मद से ,
आनन पर लाली है !
यौवन का है भार लदा सा ,
खिली खिली डाली है !
अधरों पर है गीत सुहाने ,
जो मन को हैं भाये !!
कहीं टीस है कसक जगी है ,
सुप्त भाव हैं जागे !
विरहन जोड़ रही है फिर से ,
मन से मन के धागे !
राग रंग है , कहीं चंग है ,
गीत अधर गहराए !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )