हे विश्व !
हे विश्व…..!
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हे विश्व ! तुम प्रेम में बनायी गई सुन्दर कृति हो
प्रेम और मुहब्बत से ही तुम आबाद हो
फिर क्यूं भूल गये तुम प्रेम करना
क्यूँ खींच दी तुमने जमीं पर सरहदी लकीरें
क्यूं जकड़ दिया तुमने मुहब्बत को
धर्म और मर्यादा की रस्सियों से
क्यूं छिड़कते हो प्रेम की फसल पर
नफरतों का जहरीला कीटनाशक
अरे ! नफरतों के शोध से तो पैदा हुआ है कोरोना विषाणु
नफरतों ने ही पोषण दिया था
ओसामा और कसाब को
अब संभल जाओ तुम
माफी मांग लो प्रकृति से और अपना लो इंसानियत
करने लग जाओ सजीव से मुहब्बत
खत्म कर दो नफरतें और मिटा दो सरहदें
शायद बच जाए अपना अस्तित्व और खिल जाए प्रेम के फूल हर एक डाल पर ।
©राजदीप सिंह इन्दा