हे रेलगाड़ी, कब तक तू …..
मिलती थी रोज मुझको
आज अभी तक नहीं आयी
इन्तेजार में मेरे नैना तरसे
अब क्या करें हम भाई !!!
में हमेशां तेरा इन्तेजार करता
हूँ, पल पल की तेरी में
यहाँ पहुँच कर खबर रखता हूँ
न जाने किस पल तेरे आने
की खबर आये…हर किसी
की बात काट कर बस तेरे
आने का इन्तेजार करता हूँ
आज कोहरा इतना आ
गया की तेरे आने का यहाँ
वो समय चला गया
अभी अभी यह मुझे
खबर आयी, की रस्ते
में आते आते
तेरे सामने कोई हाथी
आ गया , बुझ गया दीप
उस घर का, न जलेगा
चिराग कभी उस वन का
तूं उनको तो सता कर
आयी, अब हम को भी सतायेगी
हे रेलगाड़ी, कब तक तून
हम आने जाने वालो
को रोजाना , इसी तरह
से तडपाएगी ??
अजीत कुमार तलवार
मेरठ