हे राम! तुम्हीं जनमानस में, उर अन्तस के नारायण हो…
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निर्मल मन भाव साधना का, पूजा प्रतिफल पारायण हो।
हे राम! तुम्हीं जनमानस में, उर अन्तस के नारायण हो।
कोमल हृदयों की कोमलता, सज्जनता सार तुम्हीं तो हो।
मृदुभाषी सौम्य सरलता का, मधु मृदुलागार तुम्हीं तो हो।
हर रोम रोम में रमी हुई, समता ममता की मूरत जो।
मनमोहक सी उस झांकी के, तृण मूलाधार तुम्हीं तो हो।
उर व्योम चन्द्रिकामय करते, शुभ मंगलमय तारायण हो।
हे राम! तुम्हीं जनमानस में, उर अन्तस के नारायण हो।
हर स्वांस स्वांस के हेतु तुम्हीं, स्वांसों का प्राण तुम्हीं तो हो।
दैहिक दैविक सन्ताप हरे, भवसागर त्राण तुम्हीं तो हो।
सर्जक पालक संहारक भी, हो कालचक्र का काल तुम्हीं।
जगजीवन के हर प्राणी का, अन्तिम निर्वाण तुम्हीं तो हो।
मद लोभ मोह मत्सर निवृत्त, निष्काम काम चारायण हो।
हे राम! तुम्हीं जनमानस में, उर अन्तस के नारायण हो।
धीरज का धैर्य तुम्हीं तो हो, वीरोचित भूषण धीरों का।
हो अस्त्र शस्त्र में श्रेष्ठ तुम्हीं, ब्रह्मास्त्र शौर्य तूणीरों का।
गीता के चक्र सुदर्शन हो, रामायण के राघव तुम ही।
महाभारत के सब पात्र तुम्हीं, बल साहस ‘तेज’ सुवीरों का।
हे पूज्य पुरुष पावन प्रणम्य, तुम पुरुष श्रेष्ठ पुरुषायण हो।
हे राम! तुम्हीं जनमानस में, उर अन्तस के नारायण हो।।
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?तेज✏मथुरा✍?