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23 Mar 2021 · 1 min read

हे रघुनाथ घट घट के वासी

हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।

सदियों बाद अब पूर्ण हुआ, भारत का जो सपना था,
अवध नगर में राम लला का, पूर्ण रूपेण स्थापना था।
अपने भारत देश में रहकर, हम बने हुए थे वनवासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।

सीता मैया को हरकर, जो अपने अभिमान में ऐंठा था,
चंद्रहास शक्ति के बल पर, लंका में छुपकर बैठा था।
उसी तरह रावण बने बैठे, हैं अपने देश के कुछ वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।

लगता है अपने भारत में, राम राज्य फिर से आयेगा,
रघुकुल शिरोमणि का अब, वनवास खत्म हो जायेगा।
लौटकर आयेंगे प्रभु, अब अपनी अयोध्या नगरी में,
सदियों बाद भारत देश में, सनातन धर्म मुस्कुरायेगा।

उठो जागो हे भारत वासी, अब वक़्त नहीं है सोने का,
अपने देश की बागडोर, अब भूलकर भी नहीं खोने का।
मंथरा की टोली है देश में, जो तेरे गुलामी की है प्यासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।

हे रघुनंदन दशरथ नंदन, हे रघुनाथ घट घट के वासी,
राम लला तेरे दरस को तरसे, हम सभी भारत वासी।

?? मधुकर ??

(स्वरचित रचना, सर्वाधिकार©® सुरक्षित)
अनिल प्रसाद सिन्हा ‘मधुकर’
ट्यूब्स कॉलोनी बारीडीह,
जमशेदपुर, झारखण्ड।
e-mail: anilpd123@gmail.com

Language: Hindi
1 Like · 440 Views

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