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1 Feb 2017 · 1 min read

हे माॅ वीणावादिनी

हे माॅ वीणावादनी कुछ ऐसा जतन कर दो।
मुझे एक सफल उद्यमी का वर दो।।
मेरी लेखनी तेरे चरणों में झुकती रहे।
लालसा यही मेरी क्रपा तेरी बरसती रहे।।
ज्ञान का दीप जला अज्ञान दूर कर दो माॅ।
हे माॅ वीणावादनी——————-
मैं कुछ ऐसा करता रहूं ।
निर्झर नीर सा बहता रहूं।।
बूंद बूंद से सागर को गागर में भरता रहूं।
मेरा ललाट सागर है सूखा माॅ इसमें सागर सी मसी भर दो।
हे माॅ वीणावादिनी ———————

रचयिता – इंद्रजीत सिंह लोधी

Language: Hindi
Tag: गीत
278 Views

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