हे मात जीवन दायिनी नर्मदा जी
हे मात जीवनदायिनी, तेरी करूं मैं बंदगी
तेरे तटों पर ना हो मुझसे, भूलकर भी गंदगी
नित्य सेवन दर्शन तुम्हारे, मैं सदा करता रहूं
मैं सदा घाटों को तेरे, साफ भी रखता रहूं
वनों से शोभित किनारे, रक्षा मैं हरदम करूं
रोप कर फलदार बगिया, मैं सदा सेवा करूं
अब ना लाशें अधजली, मैं तुम्हें अर्पण करूं
पूजा के निर्माल्य का भी, उचित निष्पादन करूं
न फटे कपड़े पुराने ,न केमिकल और मूर्तियां
नाहीं पन्नी और प्लास्टिक की वनी सामग्रियां
ना तेरे जल में साबुन, न ही फिकें अब पन्नियां
ना मिलें नाले प्रदूषित, कितनी भी हों मजबूरियां
न मरें जलचर कभी, ध्यान मैं हरदम धरूं
निर्बाध निर्मल नर्मदा, धरा पर बहतीं रहें
वरदान जीवन की अमरता, जन-जन को मां देती रहें