महाकवि विद्यापति
रहल मैथिल क कवि
महाकवि विद्यापति*
कोटिशः कोटिशः नमन तोहे
अर्पित श्रद्धा सुमन तोहे
भावभक्ति युक्त वैष्णवी
प्रीति-रीति क गीत रची
कोटिशः कोटिशः नमन तोहे
अर्पित श्रद्धा सुमन तोहे
रहल कुशल संगीतज्ञ
भाव भूमि क विशेषज्ञ
कोटिशः कोटिशः नमन तोहे
अर्पित श्रद्धा सुमन तोहे
मिथिलांचल मे अद्भुत बसा
‘पदावली’ आऔर ‘कीर्तिलता’
कोटिशः कोटिशः नमन तोहे
अर्पित श्रद्धा सुमन तोहे
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*विद्यापति जिनका जीवनकाल 1352 ई. से 1448 ई. तक रहा। मैथिली व संस्कृत के कवि व संगीतकार ही नहीं। अपितु दरबारी और राज पुरोहित भी रहे। आप परम् शिवभक्त थे, लेकिन आपने प्रेम गीत और भक्ति वैष्णव गीत भी रचे। आपको विशेष रूप से ‘मैथिल कवि कोकिल’ अर्थात मैथिली के कवि कोयल की उपमा से अलंकृत किया गया है। विद्यापति का प्रभाव केवल मैथिली और संस्कृत साहित्य तक ही सीमित नहीं था, बल्कि अन्य पूर्वी भारतीय साहित्यिक परम्पराओं तक भी था। जिसका निर्वाहन आने वाले कवियों ने भी किया है।