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21 Nov 2021 · 1 min read

” हे ! महादेव विनती स्वीकारों “

हे ! जटाधारी
विनती हमारी

है भविष्य भयंकर
तू टाल शंकर ,

आहुति स्वीकारों
फिर ललकारो ,

हाहाकार मचा है
श्मशान सजा है ,

हुंकार भरो तुम
जीवन धरो तुम ,

सुरसरिता समेटो
अपनी जटा लपेटो ,

मानव अत्याचारी
दानवों पर भारी ,

अधर्मी खड़े हैं
बिन बात अड़े हैं ,

अहंकार में डूबे
बेकार मंसूबे ,

त्रिशूल उठाओ
इनको सबक़ सिखाओ ,

डमरू बजाओ
तांडव दिखाओ ,

तुम हो त्रिपुरारी
हर सकंट पर भारी ,

अपना रूप जगाओ
बेड़ा पार लगाओ ,

हे ! महेश्वर
हे ! कालेश्वर ,

हम भक्त तुम्हारे
तुम ही आस हमारे ,

उम्मीदों के सहारे
हम शरण तिहारे

करबद्ध खड़े हैं
मस्तक गड़े हैं ,

विनती स्वीकारों
हमको उबारो ।

स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/08/2021 )

Language: Hindi
225 Views
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