” हे ! महादेव विनती स्वीकारों “
हे ! जटाधारी
विनती हमारी
है भविष्य भयंकर
तू टाल शंकर ,
आहुति स्वीकारों
फिर ललकारो ,
हाहाकार मचा है
श्मशान सजा है ,
हुंकार भरो तुम
जीवन धरो तुम ,
सुरसरिता समेटो
अपनी जटा लपेटो ,
मानव अत्याचारी
दानवों पर भारी ,
अधर्मी खड़े हैं
बिन बात अड़े हैं ,
अहंकार में डूबे
बेकार मंसूबे ,
त्रिशूल उठाओ
इनको सबक़ सिखाओ ,
डमरू बजाओ
तांडव दिखाओ ,
तुम हो त्रिपुरारी
हर सकंट पर भारी ,
अपना रूप जगाओ
बेड़ा पार लगाओ ,
हे ! महेश्वर
हे ! कालेश्वर ,
हम भक्त तुम्हारे
तुम ही आस हमारे ,
उम्मीदों के सहारे
हम शरण तिहारे
करबद्ध खड़े हैं
मस्तक गड़े हैं ,
विनती स्वीकारों
हमको उबारो ।
स्वरचित एवं मौलिक
( ममता सिंह देवा , 23/08/2021 )