हे, भोले..
हे,भोले…..
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हे, भोले..
ये तेरा नभ, तेरी धरती..
हर नर, तेरा भक्त;
हर नारी, भक्ति तेरा करती;
सबका जीवन सरल हो जाए,
कष्ट कभी न, किसी में समाये;
तू भर दे, सबमें ऐसी शक्ति।
हे,भोले…
ये तेरा नभ, तेरी धरती…
तू ही पालक, तू ही हो संहारक;
तुम ही प्रेम और तू ही विरक्ति,
तू ही क्रोध है, तू ही माया है;
हर जन तो बस, तेरा ही साया है;
तेरे बिना, कोई रह नहीं सकता ;
जो कोई,इस धरा पे आया है;
सबकी, तू ही है शक्ति।
हे, भोले..
ये तेरा नभ, तेरी धरती..
सत्य और सुंदर भी सबने,
अपने शिव में ही पाया है,
फिर संकट में है,आज क्यों कोई;
क्या तूने,उसे राह नहीं दिखाया है;
आखिर,कैसे करे वो तेरी भक्ति।
हे, भोले…
ये तेरा नभ, तेरी धरती..
हे, भोले! …….
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स्वरचित सह मौलिक;
……✍️ पंकज ‘कर्ण’
…………..कटिहार।।