हे प्रभु करदे इनका भी उधार…..
देखा न कभी तूजको मैंने
माथे रोज टेकाता हूं….
ये प्रभु सुन ले कभी मेरी भी…
पावन सी कृपा करदे मुजपे
अंधे लुले भी करते है तेरी पूजा..
उनकी भी कभी सुन ले
शीश छूका के करता हूं नमन…
हे प्रभु मेरी भी सुन ले
उन दुखिये की हर ले पीड़ा…
जो शीश छुकाते है तेरे आगे
बंदे है हर एक प्रभु तेरे….
हे प्रभु मेरी भी सुनले
तू कब तक इनको रुलाएगा…
तू कब तक इनको भटकाएगा
इन की भी सुन ले तू….
हे प्रभु करदे इनका भी उधार।।।
लेखक – कुंवर नितीश सिंह
(गाजीपुर)