हे पाँख
पक्षी ने
अपने कमजोर होते
टूटते पंख से कहा-
क्या सच मे चले जाओगे
मुझे छोड़कर
तुम्हारे ही बल पर
विश्वास कर
मैंने उड़ने की कोशिश की
फिर उड़ना भी सीखा
अगर तब चले जाते
तो मैं जी लेता
दूसरे आएँगे
इस विश्वास के साथ
पर आज जब मेरा कुछ भी नहीं
कोई भी नहीं
तेरे ही बल पर जीता हूँ
मिल जाते हैं टुकड़े
उड़ लेता हूँ थोड़ा बहुत
मेरे सब कुछ तुम ही हो
हाँ, मेरे रिश्तेदार भी
तुमसे अपना मेरा कौन है
छलोगे नहीं तुम मुझे
यह विश्वास है मेरा
इतने अपने होकर भी
जिसे मैंने अब तक अपनी देह पर धारा
अगर तुम छोड़ जाओगे तो
लोगों का विश्वास
अपनों पर कभी नहीं होगा
रुक जाओ हे पाँख
मानव के रक्षार्थ रुक जाओ
समाज के रक्षार्थ रुक जाओ
मत जाओ मुझे छोड़कर
मत जाओ
मत जाओ
मेरे पाँख!
-अनिल मिश्र