हे ! निराकार रूप के देवता
तुझमें है बसता,
मुझमें है बसता,
करू मै उसको प्रणाम हे !
हे! निराकार रूप के देवता,
आदि अंत है तुझसे जुड़ा,
जीवन ये मेरा तूने दिया है,
तुम ही करो बेड़ापार हो।
भाव सागर में फसा हुआ हूँ,
घिरा हुआ हूँ मकड़ जाल में,
याद मै करता निस दिन तेरा,
करो मेरा उद्धार हो।
हे! निराकार रूप के देवता,
छोटा ना कोई, कोई बड़ा है,
रोता ना कोई जो तुझसे जुड़ा है,
करू मै सुमिरन हर बार हो।
सजग हुआ हूँ तुम्हे मै जाना,
आप ही मेरे तारणहारा,
चिंता मिटी है तुझमें समा के,
मृत्युलोक से हुआ पार हो।
हे ! निराकार रूप के देवता,
तुम ही करो बेड़ापार हो।
रचनाकार –
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।