हे नारी मुझे घाघ न कहना, इस रिश्ते का बस लाज तू रखना
मेरी कलम से…
आनन्द कुमार
मैं जाति पुरुष में जन्म लिया,
इस पर मेरा था कोई अधिकार नहीं,
नारी ही है मेरी जीवन जननी,
इसका हर पल है अभिमान मुझे।
मैं पुरुष हूं, मेरा पौरुष स्त्री से,
है उसके कोख से वंश मेरा,
मैं उसकी पीड़ा कैसे ना समझू,
जिसके प्रसव वेदना से भरा आंख मेरा,
जननी की पीड़ा है मुझको,
वह तड़प,वह वेदना है मुझको,
ऐसा न कहो की हमें दर्द नहीं,
तेरे रोम-रोम की पीड़ा है मुझको,
ईश्वर ने दिया यह सौभाग्य है तुमको,
इसको भला मैं कैसे झुठला दूं,
प्रसव वेदना में तू ही पत्नी है,
मां की मूरत बन जाती, कैसे ठुकरा दूं।
मैं पुरुष हूं यह मेरा गुनाह नहीं,
यह तेरे ही वेदना का अंजाम है,
हे नारी मुझे घाघ न कहना,
इस रिश्ते का बस लाज तू रखना,