हे नाथ आपकी परम कृपा से, उत्तम योनि पाई है।
हे नाथ आपकी परम कृपा से,उत्तम देह मैंने पाई है।
पता नहीं है जन्म पुरातन, आत्मा किस देह से आई है।।
लख चौरासी जीव चराचर, सभी धरा पर आते हैं।
जीवन चक्र जन्म मृत्यु, आदि अंत न पाते हैं।।
बड़े भाग्य से मनुज देह में, हे नाथ तुम्हें ध्याते हैं।
ज्ञान विवेक और भक्ति से, विरले नर नारी तुमको पाते हैं।।
हर जीव जंतु में बुद्धि दी है, केवल जीने और खाने की।
भूख प्यस निंद्रा मैथुन, शक्ति परिवार बढ़ाने की।।
चौरासी लाख में श्रेष्ठ योनि,नर तन में बुद्धि विवेक है।
आत्म कल्याण और सत्कर्मों को, मनुज जन्म अति श्रेष्ठ है।।
हे नाथ तुम्हारा नर तन में, अंतिम क्षण तक ध्यान रहे।
भटक न जाऊं भव सागर में, जीवन में ये ज्ञान रहे।।
काया माया का इस जग में, बड़ा तीब़ आकर्षण है।
कदम कदम पर लोभ मोह,ये मन भी तो चंचल है।।
हे नाथ कृपा कर भवसागर से, मुझको पार लगाना।
फंस न जाऊं दल-दल में,पल पल मुझे बचाना।।
सुरेश कुमार चतुर्वेदी