हे ! धरती गगन केऽ स्वामी…
हे ! धरती गगन केऽ स्वामी…
(मैथिली भजन)
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हे ! धरती गगन केऽ स्वामी ,
हमरा आसरा अहीं केऽ ।
आठो पहर जपै छी ,
सेवक छी हम अहीं केऽ…
हे ! धरती गगन केऽ स्वामी…
पसरल अछि देखु हमर ,
चारु तरफ अन्हेरा।
कांटा बिछल अछि पथ में ,
कोना करब बसेरा ।
विनती सुनु हे स्वामी ,
इज्जति हमर बचाउ ।
कनियो विलंब करु नै ,
मालिक अहां जगत केऽ।
हे ! धरती गगन केऽ स्वामी..
एतऽ सभ केओ मतलबी अछि ,
एतऽ सभ केओ लुटेरा ।
ककरा पर करी भरोसा ,
सभ चोर चोर मौसेरा ।
हारल छी हम जगत से ,
लियऽ ने अप्पन शरण मेऽ।
बिसरल छी किया अहां जऽ ,
दानी अहां जगत केऽ ।
हे ! धरती गगन केऽ स्वामी..
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – १९ /०३ /२०२२
चैत ,कृष्ण पक्ष, प्रतिपदा,शनिवार ।
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201