हे देव,नहि बनाबू हमें कोरा पोथी(कविता)
हे देव,नहि बनाबू हमें कोरा पोथी
साँच आत्म प्रकाश तोर देख न पाउ
हवा मे
जल मे
माटि मे
धूधली विरान छाप तोर मूरत
अंश दीघर हिअ इआद रखे केओ कोना
धर्म मे
करम मे
अस्तित्व मे
नान्ह विश्वास दुनियाँ ओढे कपटी चादर
पुष्प टका तौले ओहदा हमर ब्रह्मज्ञानी
पीड़िता मे
शोषिता मे
उन्मुक्ता मे
अनपढ़ हृदय तोहमत न टका बड़ घृणा
मनुख देह उत्तम यैह सए योनि पुण्य हमर
मुरख आत्मज्ञान नइ दिअ कखनो
नव जयदेव के काव्यग्रंथ मे बसल हो दुलारे
तु हो ब्रजवासी
तु हो मिथिलावासी
तु हो बंगवासी
तु हो बैजधामवासी
तु तो हो स्नेहभाव के कर्त्ता
तु तो हो सर्वस्व भूपालक
तु तो हो कंण कंण वासी
हे देव,नहि बनाबू हमें कोरा पोथी
साँच आत्म प्रकाश तोर देख न पाउ
मौलिक एवं स्वरचित
© श्रीहर्ष आचार्य