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18 Feb 2024 · 1 min read

हे दिनकर – दीपक नीलपदम्

हे दिनकर अहसानमंद हम

तुमसे जीवन प्राण पाएं हम

चले पवन और बरसें बादल

झूमे मन हो मतवाला हो पागल

हो हरा भरा पृथ्वी का आंचल

क्या क्यों हिमनद क्या विंध्याचल

क्या सरयू क्या यमुना क्या गंगा

उत्तंग शिखर है हिम आलय का

जीवन वायु पृथ्वी पर सकल

हे सूर्य प्राची से अब निकल

दो दर्शन इस शुभ दिन हमको

जिस दिवस समर्पित पूजा तुमको

अर्ध्य दिया है खुद निर्जल हो

आशीष वाँछा तुमसे तुम सबल हो

अर्ध्य दिया है सूरज तुमको

भर दो उस माँ के आँचल को ।

(c)@दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “

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