हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण
हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण,
तु पीपल की छाया हो माँ ,
तु आदिशक्ति की काया हो माँ,
प्रकृति की हो हर दशा मनोरम,
परब्रह्म धरा की कांति हो अनुपम ,
है न जननी तुझ सा कोई मेरा दर्पण,
हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण ।
सहज भाव मेरी ग्लानि हर लेती तुम,
उद्विग्न हो जाती जब किसी बात पर हम,
निज संतान हेतु सह लेती सम्पूर्ण तम,
आश्क्त हो भी होने न देती आँखें नम,
दृढ चंचल सा कार्य हमारा करती सदा समर्थन,
हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण ।
हूँ जननी आज इतनी मजबूर,
पास हो कर भी हूँ कोसों दूर,
कर्म पथ जीवन को बनाया मकड़े का जाल ,
तर्पित उर से स्फूटिता होती असंख्य ज्वाल,
जीवन में फैला क्षण -क्षण अर्चन,
हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण ।
फिर से निज आंचल में ले लो माँ,
स्निग्ध स्नेह का क्षीर सुधा फिर दे दो माँ,
जीवन का हर्ष विषाद को करो क्षमा,
है शत् शत् नमन करती नतमस्तक उमा,
जीवन का हर एक क्षण है तुझे समर्पण ,
हे जन्मदात्री करूँ क्या तुझको अर्पण ।
– उमा झा