हे कृष्ण मेरे
सुनी-सुनी गुज़र गयी,
अब की बार दीवाली भी,
तुम बिन कौन निखारे मुझको,
कौन बने मेरा सारथी,
तुम तो थे कृष्ण मेरे,
मैं अर्जुन तुम्हारा था,
तुमने ही तो बस मुझे,
हर पथ पर संभाला था!
क्यों चले गए हे कृष्ण! मेरे,
राधा सी बिरही बना मुझे,
नित नैन निहारें राह तेरी,
नित अश्रु की गंगा बहती है,
तुम थे तो थी नित होली मेरी,
हर रात्रि दीवाली मनती थी,
तुम चले गए हे कृष्ण! मेरे,
अब उजड़ गयी ये दुनिया मेरी!!
-अनुपम राय’कौशिक’