हे ईश्वर! क्या तुम मुझे क्षमा करोगे?
हे ईश्वर!
मैं नास्तिक नहीं हूं
तुम्हें भली-भांति जानता नहीं हूं
मगर मानता हूं
संभव हो तो मुझे क्षमा कर देना
क्योंकि मैं ने तुम्हें प्रसन्न करने का प्रयास छोड़ दिया है
मैं कृष्ण के बिना अर्जुन की भांति कुरुक्षेत्र के मैदान में लडने को तैयार हूं
मैं यह भी जानता हूं कि
दुर्योधन बाहर नहीं मेरे अंदर है
इसलिए मैं उससे अपने हिस्से की जमीन नहीं मांगूंगा
मैं भरत की तरह अपने सुखों का त्याग करता हूं
परोपकार ही मेरा धर्म है
सेवा ही मेरा कर्म है
मेरी समझ में यही सब धर्मों का मर्म है
मैं सूरज की तरह जलना चाहता हूं
मैं नदियों की तरह बहना चाहता हूं
मैं पादप की तरह बढना चाहता हूं
हे ईश्वर
जाने अनजाने जिन्होंने मुझे दुःख दिया
मैं उन सब को क्षमा करता हूं
क्या तुम मुझे क्षमा करोगे