हे अखण्ड, अजेय सच्चिदानन्द
हे अखण्ड, अजेय सच्चिदानन्द
इस मन सांवले को छोड़ कोई न भाया
ले पुनः अवतार आज इस धरा पर
जन जन को विश्वास दिलाया
चित्त चोर रण छोर कहलाओ
नित गोपियन प्रेम लौं सुलगाओ
अपार श्रद्धा से भर भावों को
इस मन दूजा न कोई समाया
राधे शक्ति है तुम्हारी जो विश्व
को प्रेम के बन्ध में है बांधती
पतझड़ से जीवन में सावन ला
मनो विनोद जग में तूने रचाया
सारा जीवन चल थका मानव
पंख सपनों में तूने ही लगाये
जीवन के प्रति उल्लास चक्रधर
तूने ही तो हममें में है जगाया
हो गई काया जीर्ण शीर्ण और पड़ी
सुन्दर चेहरे पर भयावह सिलवटें
राह मुक्ति की दिखा जन जन को
गोपाल भक्ति का वरद हाथ थमाया