हे,मन
बढ़तों का हाथ थामते लोग
समझ रहे ख़ुद को तीसमारखाँ
जो देते रहे साथ उनका हरदम
उनको छोड़कर
थाम रहे हाथ
तथाकथित रहनुमाओं का
पाते रहे जिनसे प्रशंसा हरदम
अच्छे कार्यों पर
उनका छोड़कर दामन
बन रहे समर्थक
निंदक दल के
नियति है यह जीवन की
अतः हे,मेरे मन!
निराश मत हो तू
वरन् बढ़ अपने पथ पर
बिना किसी प्रत्याशा के
और कर प्यार उनसे भी
जो बिछा रहे काँटे
तेरी राह में
खिलेंगे फूल एक-न-एक-दिन
महकेगा तेरे जीवन का बग़ीचा
जो ग़लत कर रहे हैं तेरे साथ
मत हो खिन्न उनके प्रति
और करता चल म्वाफ़ उन्हें
यह सोचकर कि
पता नहीं उन्हें कि वह
क्या कर रहे हैं
*सतीश तिवारी ‘सरस’,नरसिंहपुर (म.प्र.)