हे,भारत की नारी कृपानिधि !..
हे,भारत की नारी कृपानिधि !..
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो।
हे,भारत की नारी कृपानिधि !
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो,
अपने स्वरूप का ध्यान करो।
तुम धन, ऐश्वर्य की दासी नहीं,
तुम दुराचार की नहीं सहचर।
पापों से थर्राती धरती,
इसका तुम उद्धार करो।
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो,
अपने स्वरूप का ध्यान करो।
हे,भारत की नारी कृपानिधि !
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो।
स्नेह, प्रेम,ममता का सागर,
शक्ति का आधार भी हो तुम।
कालचक्र की पुकार सुनो अब ,
असुरों का संहार करो।
प्यार, मनोबल और अहिंसा,
अस्त्र मिला है ऐसा तुमको
इसका तुम व्यवहार करो।
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो,
अपने स्वरूप का ध्यान करो।
हे,भारत की नारी कृपानिधि !
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो।
तुम बिन यहाँ न सृष्टि धरा पर,
तुम संस्कार की जननी हो।
वैर भाव रखना ना अब तुम,
सभी जीवों से प्यार करो।
तुम कायरपुत्रों की जननी नहीं,
तुम दानवता की नहीं रक्षक।
पाश्चात्य जगत की जीवन गाथा,
इसका तुम प्रतिकार करो।
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो,
अपने स्वरूप का ध्यान करो।
हे,भारत की नारी कृपानिधि !
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो।
स्वरुप धरो उस सीते का,
तृणशक्ति के बल पर जिसने,
दशमुख के बल को निस्तेज करी।
सावित्री का देखो जिसने,
यमलोक में जाकर अडिग,
सत्यवान को फिर से पाई ।
इस युगांतर की बेला में,
अपने अस्तित्व का मान धरो।
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो,
अपने स्वरूप का ध्यान करो।
हे,भारत की नारी कृपानिधि !
तुम ध्यान करो, तुम ध्यान करो।
मौलिक एवं स्वरचित
© *मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २५/०६/२०२१
मोबाइल न. – 8757227201