हृदय बांध
फुट चुका अब हृदय बांध उठ – उठकर प्रेम लहर।
मानस – अम्बुधि में छायी जैसे कोई कहर।।
सपनीली चादर ओढ़े वो आती
बार – बार उसपे ही नयन जाती थी ठहर ।
सुकुं की खुशबू फैलाती थी हर सहर ।
चांद सी सूरत में डूब गया दिल का शहर ।।
वेदना में तड़प रही रूह स्वयं
यही अब बन गई खुद जहर।।
फुट चुका अब हृदय बांध उठ – उठकर प्रेम लहर।
मानस – अम्बुधि में छायी जैसे कोई कहर।।