हृदय का तार
हृदय का तार
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मन की वीणा बजती है,
सुर बेसुरा हो जाता है।
तुम बिन मेरे जीवन का,
हर काम अधूरा हो जाता है।।
तुम क्या जानो तेरे बिन मैं,
कितना खोई-खोई थी।
आंख खुली थी पर तुम मानो,
दिल से खोई-खोई थी।।
उर जागृत करता आशाएं,
जब तेरी आहट पाती हूं।
मन की वीणा बजती है,
पर! में बेसुध हो जाती हूं।।
जीवन के एकाकी तारों को,
आकर के झंकृति कर जाती।
मन मंदिर में सरगम छेड़ा,
गाती भजन,संगीत सुनाती।।
सुषमा सिंह *उर्मि,,
कानपुर