*हुस्न से विदाई*
बाइक थी उसकी शौक सवारी,
घूमने की थी फुल तैयारी।
करतूतें थी उसकी न्यारी,
यात्राएं लगती थी उसे प्यारी।
ना पढ़ाई की थी तैयारी,
भाड़ में जाए दुनियादारी।
भीड़ खचाखच शोर ही शोर,
हिम्मत ना कोई टोके और।
चलता था नजरे घूमाकर,
जुल्फों को हवा में लहराकर।
बेमतलब की बात बनाकर,
रौब और टशन दिखाकर।
लहरा लेकर बाइक चलाता,
क्या होगा आगे न घबराता?
तभी उसने दाएं को देखा,
चेहरे पर थी खुशी की रेखा।
कार में देखी हुस्न वाली,
सुन्दर प्यारी यौवनशाली।
लाल-लाल गालों वाली,
रेशम जैसे बालों वाली।
काली काली आंखों वाली,
सूरत उसकी थी निराली।
चेहरे पर था नकाब जाली,
मासूमियत उसकी करती घाली।
लंबाई उसकी थी फिट वाली,
हर झलक करती सवाली।
होठ रसीले गात कसीला,
बाइक वाला हो गया जहरीला।
जगी लालसा सुन्दर छवि की,
बात है केवल अभी-अभी की।
सपने उसके लगते गहरे,
मालूम नहीं कितने हैं पहरे।
लड़की को कुछ पता नहीं,
उसकी कुछ भी कथा नहीं।
बाइक सवार की थी करतूत,
चढ़ा था उसके सिर पर भूत।
उठाता अपने बार-बार बूट,
पता नहीं हो जाएगा शूट।
बार-बार यौवन को जुलकाता,
सांप जैसी बाइक चलाता।
खुद ही बार-बार मुस्काता,
पता नहीं क्या होगा नाता?
तभी अचानक ध्यान भटका,
लगा तभी जोर का झटका।
घूमी खोपड़ी जैसे मटका,
किसी ने उसको जोर से पटका।
बस इतनी थी उसकी लड़ाई,
हो गई दुनिया से विदाई।
यह सीख है और सच्चाई,
कदम उठाओ सोचकर भाई।
सोच समझकर मचलो भाई,
जीवन से ना हो विदाई।
भटको नहीं देखकर छवि,
दुष्यन्त कुमार लिखता है कवि।।