हुस्न छलक जाता है ……..
हुस्न छलक जाता है, जब तुम अंगराई लेती हो,
मदहोश हो जाता हूं, जब तुम अंगराई लेती हो।
हुस्न झलक जाता है, जब तुम नहाकर आती हो,
मन -मुग्ध हो जाता है, जब तुम आंचल लहराती हो।
हुस्न छलक जाता है, जब तेरी अलकें बलखाती है,
तन – मन गिला हो जताहै, जब सर्द ऋतु आती है।
हुस्न छलक जाता है, जब कमर लचकाकर चलती हो,
खुश होता हूं देख- देखकर, जब भी तुम इतराती हो।
हुस्न छलक जाता है,जब तुम बिंदियां लगती हो,
घायल हो जाता हूं, जब तुम होठों पर चुम्बन देती हो।
हुस्न छलक जाता है, जब तुम पैजनियां झनकाती हो
पागल हो जाता हूं, जब तुम अपनी अदा दिखाती हो।
हुस्न छलक जाता है, जब चुपके से सामने आती हो,
सौ सौ बार जन्म लेता हूं, जब मुझपर आकर मरती हो।
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स्वरचित : घनश्याम पोद्दार
मुंगेर