हुस्न ए मल्लिका
****** हुस्न ए मल्लिका ********
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हुस्न ए मल्लिका जब हो तलबगार
खुदा भी नहीं हो सकता मददगार
खो जाता है आदमी आगोश में
चाहकर भी नहीं हो सकता दरकिनार
प्रेम अनुभूतियों में हो कर खामोश
भावनाओं में बह जाए दिलदार
मय सा नशा इश्क का है चढ़ जाए
मयकदे को ढूंढें वहीं हो कर सवार
गेसुओं की सघन छाया में हो लीन
बाहों की गिरफ्त हो जाता है गिरफ्तार
प्रेम का जादू छा जाए इस कदर
कोई भी दवा ना होती असरदार
स्नेह की तंदों में है उलझ जाता
सुलझाने वाला न दिखे सिपहसालार
नेह की शीत हवाओं का है असर
मौसम ऐसा न होता सदाबहार
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)