हुस्न-ए-दीदार
” हुस्न-ए-दीदार ”
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ये जो तेरे हुस्न की फिजाये है
लब्ज इसने ही मेरे बनाये है ,
गुस्ताखियां जो करती तेरी निगाहें है
देखा इनमें जबसे पागल बनाये हैं!
क्या कहूं दिल का जो अंजाम है
देखा जबसे तुझे ये दिल बेजान है ,
घायल जिससे हुआ ये मेरा दिल है
कैसे कह दू वो तेरी नैनो का बान है!
तेरी जुल्फों की जो घटाये है
देख बादल भी इन्हें शर्माये हैं ,
दिल मेरा जिसने चुराये हैं
वो तेरी कातिल अदाएं हैं !
ये जो तेरी होठों के नीचे तिल का निशान है
कैसे कह दू तेरी अधरों की चंचल मुस्कान है ,
वो जो तेरी हुस्न पे काले तिल का निशान है
कैसे कह दू मैं तेरी हुस्न का वो दरबान है !
***सत्येन्द्र प्रसाद साह (सत्येन्द्र बिहारी)***