हुनर से गद्दारी
हुनर से गद्दारी ”
सख्त रवैया आज अपनो का देख,
मन मेरा खामोशी में खो गया
रख इरादा आज सपनों का ,
आज पागल पन की पगडंडी पर सो गया।
आलम आज सवार है मुझ पर ,हुनर से गद्दारी का||
चपल चंचलता आज चापलूसी की
ना जाने कैसे दिवानी हो गयी।
चाहत पर चोकसी रख खामोशी से
आज यह मन खोखला हो गया |
आलम आज सवार है हुनर से गद्दारी का मुझ पर
शरण में आकर आज मां-बाप की
क्यो उनका मन दुखा रहा ।
वरण में कर सोभाग्य का आज
आप का क्यो मन दुखा रहा |
आलम आज हुनर से सवार का मुझ पर गद्दारी का ||
आया भार आज मन पर
मेरे आवारा बन घुम रहा
ना लाया सार आज मन पर
ऐसे पर निर्भरता से जुम रहा ।
आलम आज सवार है मुझ पर ,हुनर से गद्दारी का||
छाप मन में ऐसी छायी
शान्त चिन्त में खोने की
श्राप बनी आज पढाई मेरी
भीख में कटोरा लाने की
आलम आज सवार है मुझ पर हुनर से गद्दारी का
छोटी-मोटी कर कमाई
मानो टूटी उम्मीद को अब जगाई
नशा पढाई का भुत बनकर
दिलो दिमाग में क्या कर रहा अब तराई
आलम आज सवार है मुझ पर हुनर से गद्दारी का