” हुनर कयामत ढांने वाले का “
मखमल के कपड़े में नमक लपेट कर ,
ज़ख्मों पर नमक रगड़ने का ।
क्या गजब है हुनर !
कयामत ढांने वाले का ।
फुलों को तोड़ डाली से ,
अर्थी या डोली पर सजाने का ।
क्या हुनर दिखाया है !
खुशबू को पैरों तले रौंदने का ।
गलती है कांटों के चुभ जाने की ,
उतना ही कसूर है कांटों के पास जाने वाले का ।
क्या हुनर है दर्द का !
खुद को निर्दोष कहलवाने का ।
दर्द को शायरी ,
आंसुओ को गीत बनाने का ,
क्या हुनर है गालिब का ,
हंस कर दर्द छुपाने का ।
खुद के पांव में छाले है ,
देखते है चप्पल वालों का ।
वाह ! क्या हुनर है
कयामत ढांने वाले का ।
– ज्योति