हुए है
रदीफ- हुए हैं।
प्रीति में सनम हम तुम्हारी,
आँसुओं में नहाए हुए हैं।
चैन दिन रैन का लुट गया है,
फिर भी पलकें बिछाए हुए हैं।
हां, कांटों से चोटिल होता जमाना,
पुष्प दल से हम तो घायल हुए हैं।
नज़रें करती हैं उसकी, दिवाना
हम अदाओं के कायल हुए हैं।
उनको कैसे निकालें हृदय से
जब वो नस नस में समाए हुए हैं।
रोकूं ग़ज़लें लिखने से मैं खुदको
वो गीत बन अधरों पे सजाए हुए हैं ।
ख्वाबों में है जिनका आना जाना
वो जिगर में समाए हुए हैं।
कहदो, कैसे नीलम ग़म भुलादे,
धोखे अपनों से खाए हुए हैं।
नीलम शर्मा