हुई हरकी हिला हूँ ज़ोर से मैं तो
हुई हरकत हिला हूँ जोर से मैं तो
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हुई हरकत हिला हूँ ज़ोर से मैं तो,
खड़ा हूँ राह तेरी भोर से मैं तो।
महकता तन-बदन तेरा उड़े खुश्बू,
हुआ पागल तिरी वो तोर से मैं तो।
मिले जबसे खुई सुधबुद्ध हमारी है,
हुआ घायल हँसी के शोर से मैं तो।
चलूँगा साथ तेरे हरकदम हर पल,
चले चाहे घटा घन घोर से मैं तो।
कहें कैसे हुआ है प्यार मनसीरत,
सुनी आहट हटा हूँ छोर से मैं तो।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)