हुई सत्य की हार
गीतिका :-
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झूठ मलाईदार बहुत था, हुई सत्य की हार।
समरथ की इच्छाओं पर यह, चलता है संसार।
सदा स्वार्थ में लिपटा रहता, मन में रहता पाप,
सुधर नहीं सकता है मानव, कोशिश है बेकार।
मृत्युलोक में आकर मानव, क्यों जाता है भूल,
सांसों का चलना भी तो है , ईश्वर का उपकार।
मजबूरी करवाती हरदम, उल्टे-सीधे काम,
भूख प्यास से बेबस मानव, हो जाता लाचार।
सांसों का चलना ही जीवन, समझ रहे हैं लोग,
शुष्क मरुस्थल सम लगता है, जहाँ नहीं है प्यार।
बेशक कुछ मुश्किल आएगी, और मिलेगा कष्ट,
हार नहीं होगी यह सुन लो, जहाँ सत्य आधार।
झूठ बोलना, बैर करना, नेताओं का काम,
आग फिजाओं में सुलगाना, सत्ता के औजार।
सुखमय जीवन चाह रहे यदि, कहना मानो ‘सूर्य’,
जाति धर्म की चक्कर में तुम, करो कभी मत रार।
(स्वरचित मौलिक)
#सन्तोष_कुमार_विश्वकर्मा_सूर्य
तुर्कपट्टी, देवरिया, (उ.प्र.)
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