हुआ स्नेह संचार बहुत—
हुआ स्नेह संचार बहुत,
किया था जब मधुरिम आलिंगन
रोम-रोम में उत्साह भरा,
हाथों में थामे; हाथ तेरा,
संग भ्रमण व संग रमण
हुआ, जब तन-मन का संगम।
शीतल पवन की बयार चली,
घने अलकों के छाँव में
वह कपोल-अधर पर आलिंगन,
यथा प्रसून पर भ्रमर का गुंजन
तन-मन सब आलोकित था,
पाकर उनके स्नेह का रंजन।
थे चमकते अधरों पर मोती,
जैसे गुलाब की पत्तियों पर
हुई वर्षा पुष्प बाणों की,
रतिपति के निद्रा टूटने पर
बना दास मैं रति का, जब
किया भुजाओं में आलिंगन।
बहुत दुखद है अब ये दूरी,
मिले हुए हैं दिनों बहुत
चाहत है निशास्वप्न में आने की,
दर्शन को तड़पे, ये नैन
क्या तेरी भी यही अभिलाषा है,
होगा फिर वो मधुर मिलन।
–सुनील कुमार