हुआ कुछ नहीं
होना बहुत कुछ था हुआ कुछ नही
ख़्वाहिशें बहुत थी मिला कुछ नहीं
अपने हुनर से लिखो तक़दीर अपनी
हाथों की लकीरों में लिखा कुछ नहीं
एक दूसरे का बुरा चाहता है आदमी
और इससे ज़्यादा बुरा कुछ नहीं
एक पल में सौर बार जियो ज़िंदगी
कब साँस थम जाए पता कुछ नहीं
खुद को बना लिया है मशीन की तरह
इंसान में इंसान जैसा बचा कुछ नहीं
तुमने जो नफ़रतों की राह चुनी है ‘अर्श’
इस राह में तबाही के सिवा कुछ नहीं