हिज़्र में उसकी मर नहीं गया मैं
हिज़्र में उसकी मर नहीं गया मैं
टूट कर भी बिखर नहीं गया मैं
रात भर चाँद तारे ही देखे
रात भर अपने घर नहीं गया मैं
छोड़ आया था जिस गली को फिर
उस गली उम्र भर नहीं गया मैं
मेरा दिल बार बार कहता रहा
पास उसके मगर नहीं गया मैं
आज भी इश्क करते हैं ‘सागर’
चोट खाकर सुधर नहीं गया मैं