किस्से
किस्से
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सारे शहर में घूम घूम कर!
झूठे क़िस्से :सच्चे क़िस्से!
दीवारों के कान खड़े है?
मन में कहे ही सुन लेते हैं!
ऐसे क़िस्से:वैसे किस्से!
हवा ज़हरीली बह रही है!
हरे पतों ने सोख लिये हैं!
झूठे क़िस्से सच्चे क़िस्से !
गली गली सब जली पड़ी है!
बिखरे पत्थर सुना रहे हैं
अपने किस्से;उनके किस्से!
बिगड़ गये बिन समझे वो
जैसे हों मन मचले बच्चे
इते बिते सब ने मांगे अपने हिस्से
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राजेश’ललित’