हिस्से की धूप
तुम्हारे हिस्से की कुछ धूप को
हमने चुराया है,
कुछ रस्म बेवफाई का
हमने निभाया है।
कटे जो हाथ अपना तो
सुनो अहसास होता है,
कटा दूजे का कर तो बस
समाचार होता है।
इतने वॉर सहने पर
दर्द उठता नहीं तन में,
कही ये दर्द बेचारा
हुआ अगवा नहीं मन से
बेवफाई दर्द ने की थी
सजा हमने क्यों पायी थी,
वफ़ा की आड़ में तुमने
किया क्यों बेवफाई थी।
भरी दुनिया मे बस तुमको
देवता ही तो माना था,
पता पर था नही मुझको
गुनाहो का वो स्वामी था।
मुफलिसी का हूँ मै मारा
मगर जिन्दा जमीर है ,
आज तक बिक नहीं पाया
बनी रोटी अमीर है।
बची जागीर तन की है
मगर मन तेरा स्वामी है,
बेवफाई तूने ही की है
मेरे आँखों में पानी है।
मुकम्मल थी वफ़ा ऐसी
बेवफा बन नहीं पाया,
रूह तपती रही मेरी
बनी थी रेत हमसाया।
चले थे संग मिल के हम
मगर अनजान मंजिल थी,
पहिले कौन पहुंचेगा
किसी को चिंता ये कब थी।
लगा कर जोर पूरा था
तुम्हे मंजिल दिलाई थी,
तूने हाथ दूजा थाम के
क्यों बेवफाई की ?
मिले तुम मानता निर्मेष
निरापद भाग्य था मेरा,
मेरा मिलना भी तुमको तो
कही कमतर नहीं पर था।
निर्मेष