हिसाब मांगे हैं।
फ़िलबदीह-१२२
मिसरा- तिरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे हैं।
गिरह-
महबूब मुहब्बत में आशिक से गुलाब मांगें हैं,
क्यों,तिरी निगाह तो सारा हिसाब मांगे हैं।
१)
है लूटा जिसने, नज़रों से शहर,
वो दीदार-ए-हिसाब मांगे हैं।
२)
क्यों चाहा, तुझको ही बस
मेरा दिल जवाब मांगे हैं।
३)
करके अपनी अदाओं से क़त्ल
खुद कातिल इताब मांगे हैं।
४)
क्यों तू क़ज़ा में नहीं
आशिक सराब मांगे हैं।
५)
अंज सूख रही, तेरी ख़ता से आदम
आदिल आबाद आब-ए तलाब मांगे हैं।
६)
है किस खलिश में नीलम
बिना कांटों के गुलाब,मांगे हैं।
नीलम शर्मा