हिसाब चुकता
हिसाब चुकता
तुमने
तोड़ लिया हर नाता
कर लिया
हर हिसाब चुकता
अपना ले लिया
मेरा दे दिया
लेकिन चुकता
हो भी कहाँ पाया?
तेरे दुख में दुखी हुआ
तेरी खुशी में खुश हुआ
तेरे लिए
किस-किस से लड़ा
किस-किस से भिड़ा
तेरे लिए हँसा
तेरे लिए रोया
जाने कितनी भावनाएं
रह गई बिना हिसाब किए
तेरी भी
मेरी भी
जितना हुआ हिसाब
वो भी बिना किए
रह जाता तो
बनी रहती संभावना
स्नेह की फसल
फिर से लहलहाने की
-विनोद सिल्ला©