हिम्मत से हौसलों की, वो उड़ान बन गया।
अंधेरों ने उसकी ज़िन्दगी, को कुछ ऐसे छुआ,
की स्याह रातों का वो, निगहबान बन गया।
ठोकरें लगीं तो गिरा, वो कई बार,
और फ़िर उन्हीं गलियों, का अभिमान बन गया।
विश्वास के टुकड़े, हुए थे हज़ार मगर,
आस्था से भरी आँखों, का वो सम्मान बन गया।
शब्दों से चोटिल, हुई थी संवेदनाएं उसकी,
फिर भी खामोश लब्जों, की वो ज़ुबान बन गया।
धोखा भी पछताया, होठों से हंसी छीनकर,
जब कितनों की हीं, आंसुओं की वो मुस्कान बन गया।
ठहरी थी राहें, गहरे जख्मों की मार से,
फिर हिम्मत से हौसलों की, वो उड़ान बन गया।
अस्तित्व सना होता है, धरती में बेक़दर,
फिर भी मेरी ज़हन का वो, आसमान बन गया।