हिम्मत जुटा कर दो टूक शब्द लिख रहा हूँ
हिम्मत जुटा कर दो टूक शब्द लिख रहा हूँ
बेहरूपियों के समाज में धीरे धीरे जीना सीख रहा हूँ
मेरी नियत में इंसानियत है यही वर्षों से चीख रहा हूँ
लाखों दिए सबूत फिर भी किसी को क्यों नहीं दिख रहा हूँ
कभी बिखर के सिमटना तो कभी सिमट के बिखर रहा हूँ
आज हूँ पैरों की धूल कभी चोटी का शिखर रहा हूँ
दुनिया में दरिंदा अपनी नजरों में शरीफ रहा हूँ
सबके दिलों के दूर पर खुद के करीब रहा हूँ
खुदा की हो जाये मेहर यही कब से रीझ रहा हूँ
उसके आगे करी हर प्रार्थना को आंसुओं से सींच रहा हूँ
हिम्मत जुटा कर दो टूक शब्द लिख रहा हूँ……….